ऐतिहासिक न्यायपीठ चबूतरा व् चौपाल सोरम, जिला मुज़फ्फरनगर, यू.पी.

खापों के इस सर्वोच्च खापद्वारे का ऐतिहासिक महत्व:

हिंदुस्तान का इकलौता ऐसा द्वारा जिस पर 2-2 मुग़ल बादशाह सिकंदर लोधी (1490) और बाबर (1528) शीश नवाने आये| अन्य किसी भी सामाजिक-राजनैयिक-धार्मिक महत्व के हिंदुस्तानी दर को यह सौभाग्य प्राप्त नहीं|

1) जब सहायता मांगी रजिया (1237) ने तो इस द्वारे को पुकारा, पृथ्वीराज (1192) ने इसी की शय पे गौरी को हराया!
2) 1857-क्रांति की कमान लेने को बहादुरशाह ने यहीं संदेशा पहुंचवाया, गुलामवंशी नसीरुद्दीन (1246-66) का राज था इसी चबूतरे के आशीर्वाद ने निष्कंटक बनाया|
3) विजयनगर के राजा देवराय (1424-46) की सेना को युद्ध कला सिखाने का सहयोग इसी दर से था माँगा व् सफल सहयोग दिया गया|
4) चितौड़ के राणा लाखा (1421) के पुत्र मोकल और रानी की जान को दुश्मनों से बचाने हेतु पुकार यहीं आई थी और तब यूँ सर्वखाप ने उनकी जान बचाई थी|
5) राणा सांगा (1508-28) ने बाबर से लड़ने हेतु इसी दर्श को पुकारा था, तब यौद्धेय कीर्तिमल, राणा सांगा के प्राण बचाने हेतु, अपने प्राणों को हारा था| ………..… आदि

विशेष:

यहां हरयाणा से अर्थ है वर्तमान हरयाणा+दिल्ली+वेस्ट यू.पी.+दक्षिणी उत्तराखंड+उत्तरी-पूर्वी राजस्थान| यह स्थान हर मूल- हरयाणवी के लिए गौरव, स्वाभिमान, शान और प्रेरणा की जीती-जागती इबारत है| जिसने इसको नहीं देखा और जाना उसने प्राचीन व् नवीन हरयाणा बारे कुछ नहीं जाना|

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