भारत में जमींदारी और उसके मुख्य प्रकार:
1) सामंती (Feudal) जमींदारी:
परिभाषा: दिहाड़ी मजदूर काम करते हैं, खेत का मालिक सिर्फ ऑर्डर्स पास करता है| नौकर-मालिक का रिश्ता होता है| बंधुआ करार से ले कॉन्ट्रैक्ट करार दोनों पाए जाते हैं| छूत-अछूत, वर्णवादी व् जातिवादी व्यवस्था प्रकाष्ठा के स्तर तक की होती है|
प्रभाव थ्योरी: वर्णवाद-जातिवाद|
कार्य प्रभाव क्षेत्र: बिहार-बंगाल-झारखण्ड-उड़ीसा-पूर्वी यूपी| मध्य व् दक्षिणी भारत के बारे पक्के से जानकारी नहीं|
असफलताएं: इन क्षेत्रों में दलित के साथ-साथ महादलित भी पाए जाते हैं| स्थानीय जमींदारी सिस्टम से तंग आ कर पंजाब-हरयाणा-वेस्ट यूपी-दिल्ली जैसी जगहों पे दिहाड़ी मजदूरी के लिए पलायन चलता रहता है| नस्लीय भेदभाव, वर्णीय घृणा प्रकाष्ठा के स्तर की होती है|
2) उदार (Liberal) जमींदारी:
परिभाषा: सीरी-साझी कल्चर यानि एक दूसरे को पार्टनर्स मानते हुए, यानी कामगार और खेत का मालिक दोनों खेत में काम करते हैं| कोई नौकर-मालिक का रिश्ता नहीं, पार्टनर्स का रिश्ता होता है| पक्के व् कच्चे दोनों तरह के करारों के तहत काम होता है| वर्णवाद-जातिवाद न्यूनतम होता है या होता ही नहीं है|
प्रभाव थ्योरी: खापोलोजी (सीरी-साझी)|
कार्य प्रभाव क्षेत्र: हरयाणा-पंजाब-दिल्ली-वेस्ट यूपी-उत्तराखंड-उत्तरी राजस्थान| मोटे तौर पर वह सारा क्षेत्र जहाँ तक खाप व् मिशल सिस्टम का असर रहा है|
सफलताएं: दलित को कभी भी बेसिक दिहाड़ी के लिए इस क्षेत्र से बाहर नहीं जाना पड़ा| सिर्फ दलित पाए जाते हैं, कई मामलों में तो जमींदारों की हैसियत तक के दलित यहाँ के हर गाँव में औसतन एक-दो रहते आये हैं| खेतों में एक साथ बैठ के खाना खाना, एक बर्तन से पानी पीने तक की लिबरल यानि उदार सोच पाई जाती है|
दुर्भाग्य: उदारवादी जमींदारी के एंटी राजनैतिक व् गैर-राजनैतिक समूहों-मंचों ने बिहार-बंगाल का सामंतवाद हरयाणा-पंजाब में थोंपने के अथक प्रयास कर, यहाँ की सीरी-साझी व्यस्वस्था को धत्ता करने के जीतोड़ प्रयास किये हैं| परन्तु अब स्थानीय जमींदार युवाओं व् बालकों ने सामंती जमींदारी व् उदारवादी जमींदारी के अंतर् को समझना-समझाना जबसे शुरू किया है, यह दोनों विंग के इस तरह के उद्देश्य मंद हुए हैं; परन्तु बंद नहीं|
जय यौद्धेय!